चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास – Chittorgarh Fort History in Hindi

Chittorgarh Fort

Chittorgarh Fort – चित्तौड़गढ़ का किला भारत के राजस्थान राज्य में स्थित हैं। यह किला मेवाड़ की प्राचीन राजधानी भी रह चुका है। चित्तौड़गढ़ का किला भारत के सबसे बड़े और ऐतिहासिक किलो में से एक हैं, और उससे भी कहीं ज्यादा रोमांचक है इस किले का इतिहास।

यह किला राजपूतों के त्याग,शौर्य, बलिदान और महिलाओं के अदम्य साहस की कई कहानियों को प्रदर्शित करता है। चित्तौड़गढ़ का किला राजस्थान के 5 पहाड़ी किलों में से एक है, और राजस्थान का सबसे बड़ा किला भी है। चित्तौड़गढ़ के बारे में कहा जाता है कि “गढ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढैया” 

  • देश 
   भारत 
  • राज्य
   राजस्थान  (चित्तौड़गढ़) 
  • द्वार 
   7 प्रवेश द्धार
  • निर्माण
    7वी शताब्दी
  • स्थापना
   बप्पा रावल (724 ईसवी)
  • निर्माणकर्ता 
   चित्रांगद मौर्य

 

चित्तौड़गढ़ का किला 180 मीटर की ऊंची पहाड़ी पर बना, यह किला 700 एकड़ में फैला हुआ है। यह विशाल किला अपनी भव्यता, आर्कषण और सौंदर्य की वजह से साल 2013 में यूनेस्को द्धारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया, और यहा हजारों की संख्या में पर्यटक चित्तौड़गढ़ के किले को देखने के लिए आते हैं।

 

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास – Chittorgarh Fort History

चित्तौड़गढ़ का इतिहास इस किले की तरह ही हजारों साल पुराना माना जाता है। चित्तौड़गढ़ 1568 तक मेवाड़ की राजधानी था, और उसके बाद उदयपुर को मेवाड़ की राजधानी बना दिया गया। इस किले की इसकी स्थापना सिसोदिया वंश के शासक बप्पा रावल ने की थी।

राजस्थान के मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल ने अपनी अदम्य शक्ति और साहस से मौर्य सम्राज्य के मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी को युद्ध में हराकर करीब 8वीं शताब्दी में चित्तौड़गढ़ पर अपना अधिकार कर लिया और करीब 724 ईसवी में भारत के इस विशाल और महत्वपूर्ण दुर्ग चित्तौड़गढ़ किले की 724 ईसवी में स्थापना की।

Chittorgarh Fort History

लेकिन 10 वीं शताब्दी के अंत में मालवा के राजा मुंज ने इस दुर्ग पर अपना कब्जा जमा लिया और फिर यह किला गुजरात के महाशक्तिशाली चालुक्य शासक सिद्धराज जयसिंह के अधीन रहा। 12वीं सदी में चित्तौड़गढ़ का किला एक बार फिर गुहिल वंश के अधीन रहा। 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने किले पर हस्तगत कर लिया।

1326 मैं राणा हम्मीर ने गुहिल सिसोदिया वंश को प्रतिस्थापित किया, और उसके बाद 1568 मैं मुगल शासक अकबर ने इस पर आक्रमण किया, उसके बाद 1615 तक यह किला मुगलों के अधीन रहा। 1615 ई की मेवाड़ मुगल संधि के कारण यह किला पुनः गुहिल वंश को प्राप्त हुआ, और तब से 1947 तक इस किले पर मेवाड़ के गुहिल वंश का ही अधिकार रह।  चित्तौड़गढ़ का किला  मौर्य, सोलंकी, खिलजी, मुगल, प्रतिहार, चौहान, परमार वंश के शासकों के अधीन रह चुका है।

 

चित्तौड़गढ़ के निर्माण की कहानी – Who Built By Chittorgarh Fort

Who Built By Chittorgarh Fort

चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण किसने और कब करवाया था, इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन महाभारत काल में भी इस किले का होना बताया जाता था। इतिहासकारों की माने तो चित्तौड़गढ़ का निर्माण 7वी शताब्दी में मौर्य वंश के शासक चित्रांगद मौर्य ने करवाया था।

इस किले को चित्रकूट नामक पहाडी पर बनाया गया था, जिसके बाद मौर्य शासक राजा चित्रांग ने इस किले का नाम चित्रकोट रखा था। चित्तौड़गढ़ किले के निर्माण को लेकर एक किवंदती के मुताबिक इस प्राचीन और भव्य किले को महाभारत काल में भीम ने बनवाया था, वहीं भीम के नाम पर भीमताल भीमगोड़ी, समेत कई स्थान आज भी इस क़िले के अंदर मौजूद हैं।

 

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चित्तौड़गढ़ पर हुए आक्रमण – Battle Of Chittorgarh Fort

राजस्थान के गौरव माने जाने वाले चित्तौड़गढ़ के इस किले पर 15वीं से 16वीं शताब्दी के बीच 3 बार बड़े आक्रमण हुए, लेकिन राजपूत शासकों ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए इस किले की सुरक्षा की।

1. पहला आक्रमण

1303 ई. में अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया था, क्योंकि रानी पद्मावती की खूबसूरती को देखकर अलाउद्धीन खिलजी उन पर मोहित हो गया, और वह रानी पद्मावती को अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन रानी पद्मावती के साथ जाने से मना कर दिया, जिसके कारण अलाउ्दीन खिलजी ने इस किले पर आक्रमण कर दिया।

राजा रतन सिंह और उनकी सेना ने अलाउद्धीन खिलजी के खिलाफ वीरता और साहस के साथ युद्ध लड़ा,लेकिन उन्हें इस युद्ध में पराजित होना पड़ा।जिसके बाद रानी पद्मिनी ने राजपूतों के स्वाभिमान और अपनी मर्यादा के खातिर इस किले के विजय स्तंभ के पास करीब 16 हजार रानियों, के साथ ”जौहर” कर लिया।

2. दूसरा आक्रमण

1535 ई. में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने हमला किया और विक्रमजीत सिंह को हराकर इस किले पर अपना अधिपत्य जमा लिया। उस समय रक्षा के लिए रानी कर्णावती ने  दिल्ली के शासक हुमायूं को राखी भेजकर मद्द मांगी, एवं उन्होंने दुश्मन सेना की अधीनता स्वीकार न करते हुए रानी कर्णावती ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए  13 हजार रानियों के साथ ”जौहर” कर लिया। इसके बाद उनके बेटे उदय सिंह को चित्तौड़गढ़ का शासक बनाया गया।

3. तीसरा आक्रमण

मुगल शासक अकबर ने 1567 ई. में चित्तौड़गढ़ पर हमला करके अपना अधिकार स्थापित कर लिया। लेकिन राजा उदयसिंह ने इसके खिलाफ संघर्ष नहीं किया और इसके बाद वहां से चले गए, फिर उन्होंने उदयपुर शहर की स्थापना की।

वहीं इसके बाद 1616 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर ने चित्तौड़गढ़ के किले को एक संधि के तहत मेवाड़ के महाराजा अमर सिंह को वापस कर दिया। वहीं वर्तमान में भारत के इस सबसे बड़े किले के अवशेष इस जगह के समृद्ध इतिहास की याद दिलाते  हैं।

 

चित्तौड़गढ़ किले की वास्तुकला – Chittorgarh Fort Architecture

चित्तौड़गढ़ किले तक पहुंचने के लिए 7 प्रवेश द्धार है, जिसमें पेडल पोल, गणेश पोल, लक्ष्मण पोल, भैरों पोल, जोरला पोल, हनुमान पोल, और राम पोल आदि द्वार शामिल हैं। वहीं इस किले का मुख्य द्वार सूर्य पोल है। चित्तौड़गढ़ किले के अंदर 19 मुख्य मंदिर, 4 बेहद आर्कषक महल परिसर, 4 ऐतिहासिक स्मारक एवं करीब 20 कार्यात्मक जल निकाय शामिल हैं। 

chittodgarh fort in rajsathan

700 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस दुर्ग के अंदर सम्मिदेश्वरा मंदिर, मीरा बाई मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, श्रृंगार चौरी मंदिर, जैन मंदिर, गणेश मंदिर, कुंभ श्याम मंदिर, कलिका मंदिर, कीर्ति स्तंभ और विजय स्तंभ शामिल है। इसके साथ ही इस किले के अंदर गौमुख कुंड भी इस किले के प्रमुख आर्कषणों में से एक है। यही नहीं चित्तौड़गढ़ किले के अंदर बने जौहर कुंड का भी अपना अलग ऐतिहासिक महत्व है। इस शानदार कुंड को देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। 

 

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थल – Chittorgarh Fort Tourist Palace

1. विजय स्तंभ – Vijaya Stambha

chittodgarh ka kila

चित्तौड़गढ़ के अंदर बना विजय स्तम्भ इसके लिए का प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं, विजय स्तंभ को चित्तौड़गढ़ का विजय प्रतीक भी माना जाता है। इस स्तंभ का निर्माण राणा कुम्भ ने 1448 से 1458 के बीच मालवा के सुल्तान महमूद शाह प्रथम खिलजी पर मिली जीत के रूप में किया था। जिसके कारण इस स्तंभ को विजय स्तम्भ नाम दे दिया गया।

37.2 मीटर यानी 122 फिट ऊँचे इस स्तंभ को बनाने में 10 साल का लंबा समय लगा था। यह टावर 47 वर्ग फिट आधार पर बना हुआ है। वियज स्तम्भ कुल 8 मंजिला इमारत है जिसमे कुल 157 सीढियाँ है। इस स्तंभ के ऊपर से आप चित्तौड़गढ़ का पूरा सुन्दर नजारा देख सकते है।

2. कीर्ति स्तंभ – Kirti Stambha

chittodgarh built

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के परिसर में बना कीर्ति स्तंभ (टॉवर ऑफ फ़ेम) प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।  22 मीटर ऊंचे इस स्तंभ का निर्माण जैन व्यापारी जीजा जी राठौर ने करवाया था। इस भव्य मीनार के अंदर कई तीर्थकरों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस तरह कीर्ति स्तंभ का ऐतिहासिक महत्व होने के साथ धार्मिक महत्व भी है।

3. राणा कुंभा महल – Rana Kumbha Mahal

किले के अंदर बना राणा कुंभा महल भी इस किले के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। इस महल को चित्तौड़गढ़ का सबसे प्राचीन स्मारक माना जाता है। वहीं उदयपुर को बसाने वाले राजा उदय सिंह का जन्म भी इसी महल में हुआ था। सूरल पोल के माध्यम से ही कुंभा महल मैं घुसा जा सकता है। 

4. रानी पद्मिनी महल – Rani Padmini Mahal

chittorgarh fort rani Padmini

चित्तौड़गढ़ किले का यह बेहद खूबसूरत महल है। पद्मिनी पैलेस इस किले के दक्षिणी हिस्से में एक सुंदर सरोवर के पास स्थित है। पद्मिनी महल एक तीन मंजिला इमारत है। यह महल चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है, जिसके कारण देखने में यह माल काफी आकर्षक लगता है। अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती ने अपनी एक झलक भी इसी किले में से दिखाने की इजाजत दी थी।

5. फतेह प्रकाश महल

महाराणा फतेहसिंह का यह बहूमंजिला महल हैं। जिसकी छत पर चारो तरफ सुंदर बुर्ज बने हुए हैं। आज यह महल एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर पर्यटकों के लिए खोला दिया गया है।

6. कालिका माता मंदिर – Kalika Mata Temple

chittodgarh temple

कालिका माता का मंदिर सुन्दर, ऊँची कुर्सीवाला विशाल महल है। इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में मेवाड़ के गुहिवंश के राजाओं ने करवाया था। पहले यह मंदिर मूल रूप से एक सूर्य मंदिर था, जिसके प्रमाण स्वरूप सूर्य की मूर्तियाँ आज भी है। बाद में मुस्लिम आक्रमणकारी के समय सूर्य की वह मूर्ति तोड़ दी गई। इसके बाद महाराणा सज्जन सिंह इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, और इस मंदिर में कालिका की मूर्ति स्थापित की गई। बता दें कि हर साल यहाँ एक विशाल मेला भी लगता है।

7. गौमुख कुण्ड – Gaumukh Kund

गौमुख कुंड एक विशाल, चट्टान पर बना गहरा प्राकृतिक जलाशय है। इस कुंड का आकार आयताकार है। एक छोटी प्राकृतिक गुफ़ा से जल की भूमिगत धारा हर समय बहती रहती है। इस कुंड को गौमुख कुंड इसलिए अभी कहा जाता है क्योंकि जहां से धारा इस कुंड में आती है उसका आकार गाय के मुंह के समान है।

chittorgarh gaumukh kund

बता दे कि गौमुख कुण्ड का धार्मिक महत्त्व है, और लोग इसे पवित्र कुंड के रूप में मानते हैं। कहा जाता है कि इस कुंड से एक सुरंग राणा कुम्भा के महलों तक जाती है। इस कुंड के निकट जाने के लिए सीडी अभी बनाई गई है।

8. कुंभश्याम का मंदिर – Kumbha Shyam Temple

Chittorgarh fort in rajasthan

इस मंदिर का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन् 1449 ई. में विष्णु के बराह अवतार का यह मंदिर बनवाया था। इस मंदिर पर बहुत सारी मूर्तियां बनाई गई है, स्तम्भों पर बनी मूर्तियाँ दर्शनीय हैं। इन मूर्तियों में विष्णु के विभिन्न रुपों को दर्शाया गया है। इस मंदिर में मूल रूप वराहावतार की ही मूर्ति स्थापित थी, लेकिन मुस्लिमों के आक्रमण से मुर्ति खण्डित हो गई, जिसके बाद कुम्भास्वामी की मूर्ति प्रतिष्ठापित कर दी गयी।

 

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के जौहर – Chittorgarh Durg Johar

चित्तौड़गढ़ पर कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों ने आक्रमण किये, और जब-जब चित्तौड़गढ़  परास्त हुआ है तब  वहाँ की वीरांगनाओ ने अपनी आन बान और शान बचाने के लिए जौहर (आत्मदाह) का रास्ता चुना। चित्तौड़गढ़ में तीन बार जौहर किया गया था। आज भी विजय स्तंभ के निकट इस जगह को जौहर कुंड के रूप में जाना जाता है।

पहला जौहर

चित्तौड़गढ़ का पहला जोहर सन् 1303 में राणा रतन सिंह के शासनकाल में हुआ था, जब अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी को पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में राणा रतन सिंह लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए जिसके कारण अपनी मर्यादा और स्वाभिमान को बचाने के लिए महारानी पद्मनी सहित 16000 हजार रानियों और बच्चों ने जौहर किया था। 

दूसरा जौहर

चित्तौड़गढ़ का दूसरा जोहर  1535 ईस्वी में राणा विक्रमादित्य के शासनकाल मैं हुआ था। उस समय गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया था। उस समय रानी कर्णावती ने दिल्ली के शासक हुमायूं को राखी भेजकर मदद मांगी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लेकिन उस समय कर्णावती ने शत्रु की अधीनता स्वीकार नहीं की और करनावती के नेतृत्व में 13 हजार वीरांगनाओं के जौहर किया। 

तीसरा जौहर

चित्तौड़गढ़ का तीसरा जोहर 1568 ई. में राणा उदयसिंह के शासनकाल में हुआ था, उस समय मुगल शासक अकबर के आक्रमण किया था। आक्रमण के समय राजपरिवार की अनुपस्थिति मे जयमल और पत्ता के नेतृत्व में चित्तौड़ की सेना ने मुगल सेना के साथ युद्ध किया था। जिसके बाद उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा और उस समय फुल कवर के नेतृत्व में हजारों वीरांगनाओं ने हजारों ग्रामीणों ने जौहर (आत्मदाह) किया।

 

चित्तौड़गढ़ से जुड़े रोचक तथ्य – Chittorgarh Fort Information

  • चित्तौड़गढ़ भारत का सबसे विशाल और ऐतिहासिक किला है, जिसे यूनेस्को द्धारा 2013 में वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल किया गया है।
  • चित्तौड़गढ़ का यह किला राजस्थान के 5 पहाड़ी किलों में से एक हैं। प्राचीन समय में इस किले को मेवाड़ की राजधानी के रूप में भी जाना जाता था।
  • तकरीबन 700 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला  विशालकाय किला 180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है।
  • चित्तौड़गढ़ के अंदर 65 ऐतिहासिक एवं बेहद शानदार संरचनाएं बनी हुई हैं, और 84 जल निकाय शामिल थे, जिनमें से वर्तमान में सिर्फ 22 ही बचे हैं।
  • इस किले के अंदर जाने के लिए 7 विशाल द्वारों से होकर गुजारना पड़ता है। चित्तौड़गढ़ किले के अंदर प्रचीन समय में करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोग रहते थे।
  • चित्तौड़गढ़ के इस किले पर 15वी से 16वी के बीच 3 सबसे बड़े और घातक आक्रमण हुए थे।
  • चित्तौड़गढ़ के किले को अगर ऊपर से देखा जाए तो यह मछली का आकार का प्रतीत होता है।

 

How To Visit Chittorgarh

चित्तौड़गढ का किला चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है, जो उदयपुर शहर से करीब 112 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, इस किले तक आप सड़क, रेल और हवाई जहाज के माध्यम से भी पहुंच सकते हैं। बता दें कि चित्तौड़गढ़ जाने का सबसे अच्छा विकल्प बस से या फिर उदयपुर शहर से टैक्सी किराये पर लेकर यात्रा करना है।

Best Time To Visit Chittorgarh

दोस्तों अगर आप चित्तौड़गढ़ किले की यात्रा करने के लिए जाना चाहते हैं तो बता दें कि यहां की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय साल में अक्टूबर से लेकर मार्च के महीने तक का होता है। चित्तौड़गढ़ में शाम के समय घूमने का सबसे अच्छा समय माना जाता है, क्योंकि शाम के समय मौसम ठंडा होता है और भीड़ भी कम होती है। 

Chittorgarh Fort Timings

चित्तौड़गढ़ का किला सुबह 9:30 बजे से लेकर शाम की 5:00 बजे तक रोजाना खुला रहता है। आप इस समय के बीच में किले में घूम सकते हैं।

Chittorgarh Fort Location Map 

Chittorgarh map

 

दोस्तों इस पोस्ट के माध्यम से हमने आपको Chittorgarh Fort के निर्माण और इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी बताई है उम्मीद करता हूं, आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी अगर पसंद आई है तो अपने दोस्तों के साथ इस पोस्ट को जरुर शेयर करें। धन्यवाद।

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चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास – Chittorgarh Fort History (chittorgarh durg)

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