Sher Singh Rana
Sher Singh Rana ki kahani – दोस्तों ये कहानी है भारत के एक ऐसे राजपूत की जिसको डकैत से सांसद बनी फूलन देवी की हत्या के आरोप में देश की सबसे सुरक्षित तिहाड़ जेल भेज दिया गया माना गाय। लेकिन जेल में रहकर घुट घुट कर जीना इस राजपूत का मकसद नहीं था।
उसका वह मकसद पूरा करने में तिहाड़ जेल की चारदीवारी भी उसे रोक नहीं पाई और दिनदहाड़े जेल से फरार हो जाता है, और अपना मकसद पूरा करने के लिए पहुंच जाता है अफगानिस्तान जहां पर हमारे देश की शान माने जाने वाले पृथ्वीराज चौहान की हस्तियां लेकर वापस लौट आता है अपने देश भारत।
शेर सिंह राणा की कहानी – Sher Singh Rana Biography
शेर सिंह राणा का जन्म 17 मई 1976 को उत्तराखंड के रुड़की में हुआ था। इनके बचपन का नाम पंकज सिंह पुंडीर था, और इनकी शिक्षा रुड़की और देहरादून में हुई थी, और उनके पिता का नाम ठाकुर सुरेन्द्र सिंह राणा था, वे रुड़की के सबसे बड़े जमीदारो में एक थे, और इनकी माता का नाम सत्यवती था जो बेहद धार्मिक विचारों वाली महिला थी, और बचपन से ही शेरसिह को क्षत्रिय वीरो की कहानियां सुनाया करती थी। जिनसे प्रेरित होकर शेर सिंह राणा के मन में बचपन से ही कुछ बड़ा करने की भावना पनपने लगी।
शेर सिंह राणा के जीवन का सफर
शेर सिंह राणा का सफर जो उन्होंने वर्ष 2000 से 2006 के बीच तय किया। यह कहानी शुरू होती है, तब जब शेर सिंह राणा महज 4 साल के थे, उस वक्त उत्तर प्रदेश के चंम्बल फूलन देवी जो 1980 के दशक की सबसे खतरनाक डकैत मानी जाती थी, और आज़ भी फूलन देवी का नाम सुन के चम्बल के लोग सिहर जाते है। फूलन का जन्म 10 अगस्त 1963 को गुरहा का पुरा जालौन में हुआ था।
फूलन देवी भले ही खतनाक डकैत थीं, लेकिन फुलन को उसके आस पास के ठाकुरो का डर हमेशा रहता था। इसलिए फूलन देवी ने 14 फरवरी 1981 को उत्तर प्रदेश कानपुर जिले के बेहमई गांव में अपने गिरोह के साथ मिलकर 22 ठाकुरों को गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड को बेहमई कांड के नाम से भी जाना जाता है। बेहमई कांड के बाद फूलन देवी कै बैंडिट क्वीन के नाम से भी जाना जाने लगा।
बेहमई कांड का वास्तविक कारण डाकू गिरोहों की आपसी रंजिश थी, और प्रतिद्वन्दी गिरोह ठाकुर लालाराम और श्रीराम के होने के कारण इस गांव के ठाकुरो का कत्लेआम किया गया था। उसके बाद फूलन देवी ने 13 फरवरी 1983 को भिंड में आत्मसमर्पण किया था, उस समय मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह मौजूद थे।
अर्जुन सिंह के सामने ही फूलन देवी ने सरेंडर कर डकैत की दुनिया से अपना रिश्ता खत्म किया था, और 11 साल जेल में बिताने के बाद सन् 1994 में फूलन देवी को जेल से रिहा कर दिया गया, जिसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी के सभी मुकदमे वापस ले लिए और समाजवादी पार्टी से टिकट देकर उसे मिर्जापुर सीट से सांसद बनवा दिया।
फूलन देवी हत्याकांड – Phoolan Devi Murder
इसके बाद बेहमई हत्याकांड राजपूतो के मान सम्मान के लिए बहुत बड़ा कलंक बन चुका था, और इस कलंक को धोने का काम किया बेहमई से सैंकड़ो किलोमीटर दूर रहने वाले शेर सिंह राणा ने समाजवादी पार्टी की तत्कालीन सांसद बनी फूलन देवी को 25 जुलाई 2001 दिल्ली स्थिति अपने आवास पर आ रही थी तभी शेर सिंह राणा ने गोली मार कर फूलन देवी की हत्या कर दी।
इस हत्याकांड के 48 घण्टे बाद ही 27 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने देहरादून प्रेस क्लब में खुद मीडिया के सामने ये बयान दिया कि उसने ही फूलन देवी की हत्या की है, जिसके बाद राणा ने देहरादून में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। लेकिन जब शेर सिंह राणा को इसके बारे में पूछा गया कि उसने ऐसा क्यों किया तब जो कारण सामने आया वह चौंकाने वाला था।
पुलिस के अनुसार राणा ने बेहमई हत्याकांड में मारे गए 22 राजपूतों की हत्या का बदला लेेेेने के लिए फूलन देवी की हत्या की थी। जिसके बाद शेर सिंह राणा भारत देश की सबसे सुरक्षित जेल मानी जाने वाली तिहाड़ जेल भेजा दिया गया। और जब शेर सिंह राणा जेल में थे, उस वक्त वर्ष 2000 में कंधार विमान अपहरण की घटना के वक्त हमारे देश के विदेश मंत्री स्व. जसवंत सिंह अफगानिस्तान गए हुए थे।
तब वहां की सरकार ने उन्हें यह बात बताई थी कि अफगानिस्तान में जहां मोहम्मद गौरी की कब्र है, उसके पास ही पृथ्वीराज चौहान की समाधि भी बनी हुई है। पृथ्वीराज चौहान अपने दुश्मन मोहम्मद गौरी को मार कर वीरगति को प्राप्त हुए थे, जिसके बाद में गौरी की सेना ने अफगानिस्तान के गजनी शहर में गौरी की मजार बनवायी और उसके पैरों की और पृथ्वीराज चौहान की समाधि बनाई।
जिसके बाद वहां की तालिबान सरकार ने चौहान को अपमानित करने के लिए यह नियम बनाया गया की जो भी मोहम्मद गौरी की मजार देखने आएगा उसको पहले पृथ्वीराज चौहान की समाधि पर जूते से मारना होगा, इसके लिए वहाँ जूते भे रखे हुए हैं। और जब भी कोई मोहम्मद गौरी की समाधि देखने आता है, तो उसको पहले पृथ्वीराज चौहान की समाधि को जूते से मारकर अपमानित करना पड़ता था, उसके बाद गौरी की कब्र के दर्शन करे।
लेकिन जशवंत सिंह भारत लौटकर भी इस विषय में कुछ नहीं कर पाये, जबकि इस घटना का जिक्र एक बार और मीडिया में खूब हुआ था। लेकिन जब अखबार में पृथ्वीराज चौहान की समाधि अफगानिस्तान होने की खबर शेर सिंह राणा को पता चले तो राणा ने अफगान जाकर चौहान की अस्थियां भारत लाने का निर्णय लिया, और शेर सिंह राणा देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल से 17 फरवरी 2004 की सुबह अपने साथियो के साथ फिल्मी अंदाज में फरार हो गए। यह सब शेर सिंह राणा की बनी बनाई एक योजना के तहत हुआ था।
हुआ यूं था की 17 फरवरी 2004 को तिहाड़ जेल में उत्तराखंड पुलिस की वर्दी में तीन पुलिस के जवान फर्जी कोर्ट वारंट के साथ तिहाड़ जेल आये और उन्होंने कहा की उन्हें शेर सिंह राणा को एक पेशी के सिलसिले में हरिद्वार के कोर्ट में उपस्थित करना है और उनके पास सारे पेशी और कोर्ट आर्डर के कागजात भी थे। तिहाड़ जेल में सारे पेपर की जांच करने के बाद जब सब ठीक लगा लो शेर सिंह राणा को उनके साथ जाने की अनुमति मिल गई
और तीनो शेर सिंह राणा को तिहाड़ जेल से चुरा कर फरार हो गए। शेर सिंह राणा ने देश की सबसे सुरक्षित तिहाड़ जेल की सुरक्षा की ऐसी धज्जियां उडाईं कि जेल प्रशासन से लेकर सरकार तक हिल गई, और पुरे देश में हड़कंप मच गया, और जब दिल्ली पुलिस राणा को खोजने में नाकाम रही तो उन्होंने शेर सिंह राणा पर 50,000 रुपये का इनाम भी घोषित कर दिया था।
यह भी देखें
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शेर सिंह राणा जब अफगानिस्तान गए
तिहाड़ जेल से फरार होने के बाद शेर सिंह राणा का एक ही मकसद था की कैसे भी करके हमारे देश के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अस्थियों को अफगानिस्तान से भारत लाने का इसलिए राणा ने रांची के निवासी संजय गुप्ता के नाम और पते का फर्जी पासपोर्ट बनाया और कोलकाता चले गए। जहा से बांग्लादेश का वीजा बनवा कर बांग्लादेश चले गए। वहां पर फर्जी दस्ताबेजों की मदद से राणा ने यूनिवर्सिटी में इंग्लिश ऑनर्स में एडमिशन ले लिया।
उसी दौरान वहां से फर्जी बांग्लादेशी पासपोर्ट बनवाकर दुबई से कराची होते हुए अफगानिस्तान के शहर काबुल पहुंचे, जहा से कंधार में 5-6 दिन रहकर उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की समाधि की खोज की, और जब और समाधि नहीं मिली तो फिर वापस काबुल गए और जानकारी मिलने पर वहाँ से गजनी शहर पहुंचे। वहां पर लगभग 2 महीनों तक पृथ्वीराज चौहान की समाधि खोजने में लग गए।
बता दें कि जिस वक़्त शेर सिंह राणा अफगानिस्तान गए थे उस वक़्त वहाँ तालिबानी शासन था, जिस कारण काफिरो को देखते ही मार डालने के आदेश थे। तालिबानों के उस इलाके में कदम-कदम पर खतरा था, लेकिन शेर सिंह राणा बिना डरे पृथ्वीराज चौहान की समाधि से अस्थियाँ निकलने की पूरी प्लांनिग कर चुके थे। फिर अवसर देखकर एक रात पृथ्वीराज चौहान की समाधि खोदकर उसमें से अस्थियां निकाल कर भारत लौट आये।
इस पुरे काम को अंजाम देने में शेर सिंह राणा को लगभग 3 महीने का समय लगा था। इस पूरी घटना को राणा ने कैमरे की मदद से वीडियो बनाया, और भारत आने के बाद राणा ने अपनी मां की मदद से गाजियाबाद के पिलखुआ में पृथ्वीराज चौहान का एक मंदिर बनवाकर उनकी अस्थियों को रख दिया। जिसके बाद क्षत्रिय महासभा ने कानपुर के निकट पृथ्वीराज चौहान का एक स्मारक बनवाया।
काफी वक्त गुजरने के बाद 17 मई 2006 को राणा को एक बार फिर कोलकाता के एक गेस्ट हाउस से गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद अदालत ने फूलन देवी की हत्या के दोषी शेर सिंह राणा को उम्रकैद तथा 1 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा सुनाई गई। जिसके बाद से वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में सजा काट रहे थे, जिसके बाद जेल में ही रह के राणा ने एक किताब भी लिखा है, जिसका नाम “जेल डायरी* है।
Sher Singh Rana Wife
बाद राणा को वर्ष 2017 में जमानत मिली। जमानत पर बाहर आने के बाद शेर सिंह राणा ने छतरपुर जिले के पूर्व विधायक राणा प्रताप सिंह की बेटी प्रतिमा सिंह से शादी की, ये शादी 20 फरवरी 2018 को उत्तराखंड के रुड़की में हुई थी।
इस दौरान शेर सिंह राणा को दहेज के तौर पर 10 करोड़ की खदान और 31 लाख रुपए दिए गए थे लेकिन शेर सिंह राणा ने दहेज लेने से मना कर दिया था। बता दें कि शेर सिंह राणा ने 2012 में उत्तर प्रदेश के जेवर से निर्दलीय चुनाव भी लड़ा था लेकिन उन्हें वहां पर हार का सामना करना पड़ा।
Sher Singh Rana Movie
बहुत कम लोगों को पता है की शेर सिंह राणा पर “एंड ऑफ़ बैंडिट क्वीन ( End of Bandit Queen”) नामक एक फिल्म भी बनी हुई है। जिसके प्रोड्यूसर ” जे.एस. वालिया” है, और शेर सिंह राणा का किरदार अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्धिकी ने निभाया है।
sher singh rana ने देश का गौरव जान की परवाह न करते हुए लौटाने का सम्मान तो हर हाल में मिलना चाहिये। दोस्तों आपका इस बारे में क्या कहना है, हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं और अगर आपको हमारा यह आर्टिकल और जानकारी पसंद आई है तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।
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शेर सिंह राणा की कहानी – Sher Singh Rana History in Hindi