Kumbhalgarh Fort
Kumbhalgarh Fort – कुम्भलगढ़ किला मेवाड़ के प्रसिद्ध किलो में से एक है,जो अरावली पर्वतमाला पर स्थित है। कुंभलगढ़ का किला राजस्थान के राजसमंद जिले की केलवाड़ा तहसील में स्थित है।
कुंभलगढ़ किला राजस्थान राज्य के पांच पहाड़ी किलों में से एक है, और चित्तौड़गढ़ के बाद यह किला राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला है। इस किले की निर्माण शैली और इतिहास को देखते हुये वर्ष 2013 में यूनेस्को द्वारा इस दुर्ग को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित कर दिया गया था।
| महाराणा कुम्भा |
| राजस्थान |
| (1443-1458) |
| राजसमंद |
| 36 कि.मी. लम्बी /15 फ़ीट चौड़ी |
कुंभलगढ़ किले का निर्माण – Who built Kumbhalgarh Fort
कुंभलगढ़ किले का निर्माण महाराणा कुंभा ने 15 वी शताब्दी में सन् 1443 मैं शुरू करवाया था और 1458 को यह किला बनकर तैयार हुआ । इस दुर्ग के पूर्ण निर्माण में 15 साल (1443-1458) लगे थे। यह दुर्ग समुद्रतल से करीब 1100 मीटर कि ऊचाईं पर बना हुआ है ।
इसका निर्माण सम्राट अशोक के दूसरे पुत्र सम्प्रति के बनाए दुर्ग के अवशेषो पर किया गया था। दुर्ग का निर्माण पूरा होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के भी बनवाये थे, जिन पर दुर्ग और उनका नाम अंकित था। कुंभलगढ़ के किले को मेवाड़ की आंख भी कहा जाता है ।
कुंभलगढ़ किले की दीवार – Kumbhalgarh Fort Wall
कुंभलगढ़ किले को उस समय अजयगढ़ के नाम से भी जाना चाहता था ।क्योंकि इस महान किले पर विजय प्राप्त करना लगभग असंभव था और इस किले के चारों तरफ एक बड़ी दीवार बनी हुई थी जो ‘द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना’ के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार है।
इसलिए इसे ‘द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ के नाम से भी जाना चाहता है। यह दीवार 36 किमी तक फैली हुई है और 15 मीटर चौड़ी है।
कुंभलगढ़ किले की वास्तुकला – Kumbhalgarh Fort Architecture
कुंभलगढ़ दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिसके कारण यह किला प्राकृतिक सुरक्षा का आधार पाकर अजेय रहा। इस दुर्ग में ऊंचाई वाले स्थानों पर महल,मंदिर एवं आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग खेती के लिए किया गया वही ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस किले को मजबूत और स्वाबलंबी बनाया गया।
कुम्भलगढ़ के चारों ओर 13 पर्वतीय शिखर और 7 विशाल द्वार किले की रक्षा करते हैं, इस किले के अंदर कुल 360 मंदिर बने हुये है और इन मंदिरो मे 300 जैन मंदिर है और बाकी मंदिर हिन्दू मंदिर है, कुंभलगढ़ दुर्ग की दीवार अरावली पहाड़ियों मे फैली हुई है, इस दुर्ग के अंदर जाने वाले दरवाजे को राम पोल के नाम से भी जाना जाता है।
कुंभलगढ़ दुर्ग के भीतर एक और दुर्ग, बना हुआ है, जो सबसे ऊंचे भाग पर स्थित है और खड़ी ऊंचाई होने के कारण इसे कटारगढ़ के नाम से भी जाना जाता है कहा जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है। इस गढ़ के ऊपरी भाग पर बादल महल है, और कुम्भा महल सबसे ऊपर है।
महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राज परिवार भी इसी किले में रहा। यहीं पर पृथ्वीराज चौहान और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। हल्दी घाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे।
राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाङ राजपरिवार की स्वामीभक्त पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन की बलि देकर महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर उनका पालन पोषण किया था। इसी दुर्ग में उदयसिंह का मेवाङ के महाराणा के रूप में राज्याभिषेक हुआ।
कुम्भलगढ़ निर्माण कहानी – Kumbhalgarh Fort Built By
कुंभलगढ़ दुर्ग के निर्माण कि कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है। 1443 में राणा कुम्भा ने इसका निर्माण शुरू करवाया पर निर्माण कार्य मैं काफी दिक्कतें आने लगी थी जिसके कारण निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पाया, राजा इस बात पर चिंतित हो गए और उन्होंने एक संत को बुलाया। संत ने बताया यह काम तभी आगे बढ़ेगा जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद आगे आएगा।
राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है। इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी, और संत ने कहा कि उसे इस पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुक जाएं वहीं पर उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए।
ठिक ऐसा ही हुआ और वह संत 36 कि.मी. तक चलने के बाद रुक गया और और उसी जगह उसका सर धड़ से अलग कर दिया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार “हनुमान पोल ” है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है। महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे। जिसमें से 32 किलों का नक्शा उनके द्वारा ही बनवाया गया था।
कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है। इस किले की दीवार इतनी चौड़ी है कि इस पर 10 घोड़े एक साथ एक ही समय में उस पर दौड़ सकते हैं। आपको बता दें कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का इस्तेमाल करते थे, जिनसे बड़ी बड़ी मशाले जला कर प्रकाश किया जाता था। जिसके कारण मजदूरों को काम करने में आसानी होती थी।
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कुंभलगढ़ किले पर हुऐं आक्रमण – Attack On Kumbhalgarh
इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू होने भी शुरू हो गए थे, लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजेय ही रहा है। उस बार भी दुर्ग में पीने का पानी खत्म हो गया था और दुर्ग को बहार से चार राजाओ कि सयुक्त सेना ने घेर रखा था यह थे मुग़ल शासक अकबर, आमेर के राजा मान सिंह , मेवार के राजा उदय सिंह और गुजरात के सुल्तान।
राजस्थान के इस प्रसिद्ध दुर्ग पर अनेकों बार आक्रमण हुए, सबसे पहले इस महान दुर्ग पर 1457 मे अहमद शाह प्रथम ने आक्रमण किया लेकिन उसकी यह कोशिश नाकामयाब रही। अहमद शाह के बाद महमूद खिलजी ने भी इस किले पर 1458 और 1467 में आक्रमण किया था। लेकिन उन्हें भी हर बात हार का ही सामना करना पड़ा ।
लेकिन कुंभलगढ़ की कई सारी दुखद घटनाये भी है जिस परमवीर महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा पाया था, वही महाराणा कुम्भा इसी दुर्ग में अपने पुत्र उदय कर्ण द्वारा राज्य लिप्सा में मारे गए थे।
कुंभलगढ़ के दर्शनीय स्थल – inside Kumbhalgarh Fort
किले के अंदर कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमे से कुछ महत्वपूर्ण स्थलों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं
1. गणेश मंदिर
गणेश मंदिर किले के अंदर बने सभी मंदिरों में सबसे प्राचीन है, जिसको 12 फीट के मंच पर बनाया गया है। इस किले के पूर्वी किनारे पर 1458 के दौरान निर्मित नील कंठ महादेव मंदिर स्थित है।
2. वेदी मंदिर
वेदी मंदिर का निर्माण राणा कुंभा द्वारा ही किया गया है, और यह हनुमान पोल के पास स्थित है, जो पश्चिम की ओर है। वेदी मंदिर तीन-मंजिला अष्टकोणीय जैन मंदिर है जिसमें कुल 36 स्तंभ हैं, बाद में इस मंदिर को महाराणा फतेह सिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था।
3. पार्श्वनाथ मंदिर
पार्श्व नाथ मंदिर 1513 के दौरान निर्मित किया गया था। इसके पूर्व की तरफ जैन मंदिर है और इसके अलावा कुंभलगढ़ किले में बावन जैन मंदिर और गोलरा जैन मंदिर प्रमुख जैन मंदिर हैं।
4. बावन देवी मंदिर
बावन देवी मंदिर का नाम एक ही परिसर में 52 मंदिरों से निकला है। इस मंदिर में अंदर आने का केवल एक प्रवेश द्वार है। बावन मंदिरों में से दो बड़े आकार के मंदिर हैं जो बीचों बीच स्थित हैं। इसके अलावा बाकी 50 मंदिर छोटे आकार के हैं।
5. कुंभा महल
गडा पोल के करीब स्थित कुंभ महल राजपूत वास्तुकला के बेहतरीन संरचनाओं में से एक है। यह एक दो मंजिला इमारत है जिसमें एक सुंदर नीला दरबार है।
6. बादल महल
राणा फतेह सिंह ने 1885-1930 ईस्वी के बीच निर्मित यह कुंभलगढ़ किले के सबसे ऊपरी भाग पर बना हुआ है। इस महल तक पहुंचने के लिए आपको संकरी सीढ़ियों से होकर छत पर चढ़ना पड़ता है। यह बहुमंजिला इमारत है।
Kumbhalgarh Fort Information In Hindi
- 2013 में यूनेस्को द्वारा कुंभलगढ़ दुर्ग को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित कर दिया गया था।
- कुंभलगढ़ का निर्माण महाराणा कुंभा ने 15वी शताब्दी मैं सन् 1443 में शुरू करवाया था, और 1458 में यह किला बन कर तैयार हुआ।
- कुंभलगढ़ दुर्ग के दीवार की लंबाई 36 कि.मी. तथा चौड़ाई 15 फीट है। बता दें कि इस दीवार पर 8 घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं।
- कुंभलगढ़ का किला समुद्र तल से 1100 की ऊंचाई पर बना हुआ है।
- कुम्भलगढ़ के चारों ओर 13 पर्वतीय शिखर और 7 विशाल द्वार हैं, जो किले की रक्षा करते हैं।
- कुंभलगढ़ के अंदर कुल 360 मंदिर बने हुये है और इन मंदिरो मे 300 जैन मंदिर है और बाकी हिन्दू मंदिर है।
- कुंभलगढ़ किले की दीवार चीन की दीवार “Great Wall Of Chain” के बाद दुनिया की सबसे लंबी दीवार है जिसे ‘Great Wall Of India’ कहां जाता है।
- कुंभलगढ़ दुर्ग को “मेवाड़ की आंख” के नाम से भी जाना जाता है।
- कुम्भलगढ़ किले को जून 2013 में पेन्ह में आयोजित वर्ल्ड हेरिटेज साईट की 37 वी मीटिंग में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था।
How To Reach Kumbhalgarh Fort
कुंभलगढ़ किला राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित हैं। जहाँ पर कोई हवाई अड्डा नहीं है। लेकिन फिर भी आप कुंभलगढ़ किले तक रेल, बस और हवाई जहाज के माध्यम से पहुंच सकते हैं।
Kumbhalgarh Fort Timings
पर्यटकों के लिए कुंभलगढ़ का किला सुबह 9:00 बजे से लेकर शाम की 6:00 बजे तक खुला रहता है। और पूरे किले को देखने में तकरीबन आपको डेढ़ से 2 घंटे का समय लगता है।
इसके अलावा कुंभलगढ़ में शाम को तकरीबन 7:00 बजे के बाद लाइट एंड साउंड शो में विभिन्न प्रकार के लाइट इफेक्ट से कुंभलगढ़ किले पर रोशनी डाली जाती है जिसे संगीत और कुंभलगढ़ के इतिहास की जानकारी के साथ पेश किया जाता है।
Kumbhalgarh Fort Ticket Price
कुंभलगढ़ किले में भारतीय आगंतुक के लिए प्रवेश शुल्क 40 और विदेशियों के लिए 600 रु प्रवेश शुल्क है, और लाइट और साउंड शो के लिए पर्यटकों को अलग से टिकट खरीदनी पड़ती है जिसकी कीमत है 100 रुपए । यह शो सिर्फ हिंदी भाषा में ही प्रस्तुत किया जाता है।
Best Time To Visit Kumbhalgarh
कुंभलगढ़ किले का यात्रा करने का सबसे अच्छा समय जुलाई से फरवरी के महीनों के बीच मानसून या सर्दियां है। क्योंकि यह मौसम दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए काफी अच्छा है। राजस्थान में सर्दियों में मौसम सुहावना रहता है, इस समय यहाँ की जलवायु बहुत ठंडी रहती है इस लिए यह समय इस किले को देखने का सबसे अच्छा समय है।
Kumbhalgarh Fort Location
दोस्तों आपको हमने इस आर्टिकल में Kumbhalgarh Fort history in Hindi के बारे में पूरी जानकारी दी है, उम्मीद करता हूं आपको हमारी यह जानकारी और पोस्ट पसंद आई होगी अगर पसंद आई है, अपनी राय हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं और इस पोस्ट को अधिक से अधिक अपने दोस्तों के साथ साझा करें धन्यवाद।
दोस्तों अगर आप कुम्भलगढ़ का इतिहास का वीडियो देखना चाहते हे तो वीडियो देख सकते हैं
कुम्भलगढ़ किले का इतिहास – History Of Kumbhalgarh Fort in hindi