भोपाल गैस काण्ड – Bhopal Gas Tragedy Case Study in Hindi

Bhopal Gas Tragedy

भोपाल गैस काण्ड

Bhopal Gas Tragedy3 दिसंबर 1984 की रात भी बाकी रातों की तरह सामान्य थी।  लोग अपने घरों में सोने की तैयारी में थे. रविवार का दिन था। कामगार लोग अगले दिन काम पर जाने की सोचकर समय पर सो जाना चाहते थे. करीब आधी रात की बात थी. कुछ लोग रात में 9 से 12 का फिल्म का शो देखकर घर लौट रहे थे, की अचानक उन्हें सांस लेने में अजीब सी परेशानी महसूस हुई। सांस की परेशानी के बारे में वे सोचते उससे पहले आंखे जलने लगी। वो कुछ समझ पाते उससे पहले सामने से भागती आती हुई भीड़ दिखाई दी. ये भीड़ उनके पास आते-आते पहले से कम हो गई क्योंकि पीछे दौड़ रहे लोग गिरते जा रहे थे।

अब इन सबको समझ आ गया था कि कुछ गड़बड़ हो गई है।  ये गड़बड़ हुई थी उस समय साढ़े आठ लाख की आबादी वाले भोपाल के सैकड़ों लोगों को नौकरी देने वाले यूनियन कार्बाइड के इंसेक्टिसाइड (insecticide) बनाने वाले एक कारखाने में। दरअसल उस रात को कारखाने में मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) नामक ज़हरीली गैस का रिसाव होने लगा, और धीरे-धीरे यह जहरीली गैस पूरे भोपाल शहर में फैल जाती है, और अगले 2 से 3 दिनों के अंदर अंदर हजारों लोग मारे जाते हैं।

जिसे हम आज भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal gas tragedy)  के नाम से भी जानते हैं। इसे दुनिया का सबसे खतरनाक इंडस्ट्रियल डिजास्टर माना जाता है। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि ये जो इतना बड़ा  incident हूआ है, उसमें आखिर गलती किसकी थी, वर्कर्स की थी या फिर कंपनी जिसकी यह फैक्ट्री थी, या फिर किसी और की तो आइए जानते हैं आज के हमारे वीडियो में इस incident को गहराई से।

 

भोपाल गैस कांड फैक्ट्री – Bhopal Gas Tragedy Factory

दोस्तों जिस फैक्ट्री में यह डिजास्टर हुआ वो दरअसल यूनियन कार्बाइड (Union Carbide India Limited) का कारखाना था जिसे सन् 1979 में भोपाल में शुरू किया गया था। इसमें भारत सरकार और अमेरिकी कंपनी की साझेदारी थी। 51 फीसदी हिस्सेदारी यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) की थी तो सैद्धांतिक रूप से मिल्कियत भी इसी कंपनी की हुई।

union carbide factory
                                                                Image Credit – bhopal.net

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस फैक्टरी में मिथाइल आइसोसाइनाइट (Methyl Isocyanate) नामक गैस का उपयोग करके सेविन नाम का एक कीटनाशक बनाया जाता था। सेविन मूलत: कार्बारिल नामक कीटनाशक था जिसका नाम यूनियन कार्बाइड ने सेविन (Sevin) रखा था। फैक्टरी सालभर में 2500 टन सेविन का उत्पादन कर रही थी। इसकी क्षमता 5000 टन के उत्पादन की थी।

1980 का दशक आते आते सेविन की मांग कम होने लगी। सेविन की बिक्री बढ़ाने के लिए इसे सस्ता करने की योजना कंपनी ने बनाई। इसके लिए उन्होंने उत्पादन लागत को कम करना शुरू किया। इस फैक्टरी में स्टाफ कम किया गया, रखरखाव कम किया गया और कंपनी के कलपुर्जे कम लागत वाले खरीदे गए जैसे स्टेनलैस स्टील की जगह सामान्य स्टील का इस्तेमाल किया गया। 

नवम्बर 1984 तक कारखाना के कई सुरक्षा उपकरण न तो ठीक हालात में थे और न ही सुरक्षा के नियमों का पालन किया जा रहा था। स्थानीय न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार कारखाने में सुरक्षा के लिए रखे गये सारे मैनुअल अंग्रेज़ी में थे जबकि कारखाने में काम करने वाले ज़्यादातर कर्मचारी को अंग्रेज़ी का बिलकुल ज्ञान नहीं था। साथ ही, पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेन्ट ने भी काम करना बन्द कर दिया था। हालांकि इसके बावजूद भी बिक्री ज्यादा बढ़ी नहीं और फैक्टरी में स्टॉक अभी भी बना हुआ था। इसलिए फैक्टरी में नया उत्पादन रुका था. सिर्फ रखरखाव और जांच का काम चल रहा था।

 

भोपाल गैस कांड में कोनसी गैस थी (Bhopal Gas Tragedy Gas Name)

Methyl isocyanate

फैक्टरी में 3 बड़े-बड़े अंडर ग्राउंड टैंक बने हुए थे, E610, E611, E619 इन टैंकों के अंदर MIC गैस को लिक्विड फॉर्म में भर कर रखा जाता था।  बता दें कि मिथाइल आइसोसाइनाइट (Methyl Isocyanate) एक बेहद जहरीली गैस है, जिसका उपयोग कंपनी कीटनाशक बनाने के लिए करती थी, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मिथाइल आइसोसाइनाइट की 21 PPM मात्रा किसी भी इंसान की जान लेने के लिए काफी होती है, और यह तब और भी ज्यादा जहरीली बन जाती है जब यह पानी के संपर्क में आती हैं। 

कारखाने के सुरक्षा उपकरणों का ठीक हालात में ना होना, सुरक्षा के नियमों का पालन ना करना और रखरखाव में कमी अब इतने सारे sefty measures को इग्नोर किया जाएगा तो दुर्घटना तो होगी ही, और आखिर वो काली रात आती है जिसकी बहुत से लोगों के लिए कभी सुबह नहीं हुई।

 

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भोपाल गैस कांड कैसे हुआ था (How did Bhopal Gas Tragedy Occur)

2 दिसंबर 1984 की रात भी बाकी रातों की तरह भोपाल के लोगों के लिए सामान्य थी। रात के 11 बजकर 45 मिनट का समय हो रहा था। रखरखाव की कमी और फैक्ट्री के मेंटेनेंस पर ध्यान ना देने के कारण टैंक संख्या E610 में नियमित रूप से जितनी गैस भरी जानी चाहिए उससे ज़्यादा MIC गैस भरी हुई थी, और  गैस का तापमान जहां 4 से 5 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए उस जगह पर तापमान 20 डिग्री सेल्सियस था। और जो इन टैंकों के तापमान को कम करने के लिए पानी के कूलिंग पाइप लगाए गए थे, उन पानी के पाइप से पानी मिथाइल आइसोसाइनाइट के टैंक में चला गया।

bhopal gas tragedy

जिसके कारण मिथाइल आइसोसाइनाइट ने पानी में मिलकर क्रिया की और भारी मात्रा में मेथिलएमीन और कार्बन डाई ऑक्साइड बनना शुरू हो गया। माना जाता है कि E610 टैंक में करीब 25 से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस भरी हुई थी। और उसके थोड़ी देर बाद  फैक्ट्री में काम कर रहे वर्कर्स की आंखें जलने लगी, वर्कर्स को लगा कि कहीं पर गैस लीक हो रही है। लेकिन उस समय वर्कर्स ने इसे ज्यादा सीरियसली नहीं लिया।

जिसके बाद धीरे-धीरे E610 टेकं के अंदर का तापमान 200 डिग्री सेल्सियस के पार पहुच गया, और जब वर्कर्स ने प्रेशन मीटर में यह सब देखा तो उन्होंने जो टेकं की कुलिंग के लिए पाइप लगाए गए थे उनका स्विच ऑफ कर दिया।

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, जिसके कुछ देर बाद में बड़ी तेजी के साथ यह जहरीली गैस वातावरण में फैलने लगी। लगभग 45 से 60 मिनट के अंदर-अंदर तकरीबन 30 मेट्रिक टन गैस का रिसाव हो गया।  यह गैस धीरे धीरे हवा के साथ मिल गई और लोगों की सांस में जाने लगी। वहां काम कर रहे हैं वर्कर्स को यह realized हो गया कि अब यह सब आउट ऑफ कंट्रोल हो चुका है, और वहां मौजूद सभी वर्कर्स भी फैक्ट्री को छोड़कर भागने लगे।

 

गैस लीक होने के बाद क्या हुआ था। 

भोपाल के करीब पांच लाख लोग इस गैस की चपेट में आ चुके थे। भोपाल के कई स्थानीय लोग इस फैक्टरी में काम भी करते थे. उन्हें ट्रेनिंग के दौरान बताया गया था कि कभी प्लांट में कोई भी गैस लीकेज हो तो हवा की उल्टी दिशा में भागें और अपने कपड़े गीले कर जमीन पर औंधे मुंह लेट जाएं। लोगों को जब पता चला कि गैस लीक हो गई है तो उन्होंने अपने घर और आस पड़ोस वालों को ये तरीका बताया और हवा की उल्टी दिशा में भागे और आगे जाकर जमीन पर लेट गए। 

bhopal gas tragedy

ऐसा करने से बहुत सारे लोगों की जानें तो बच गईं लेकिन इस खतरनाक गैस से वो हमेशा के लिए विकलांग हो गए।  भोपाल की सड़कों पर ऐसे ही लाशें पड़ी दिखाई देने लगीं जैसे महीने भर पहले हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली में पड़ी थीं. जो लोग जिंदा बचे वो अस्पतालों की तरफ भागते दिखे. भोपाल में तब बस दो अस्पताल थे. रात का वक्त होने के चलते जूनियर डॉक्टर्स ही ड्यूटी पर थे। 

देखते ही देखते मरीजों का अंबार लग गया और डॉक्टरों के पास कफ सिरप और आई ड्रॉप के अलावा कोई इलाज नहीं था। गैस लीक होने का पता चलते ही कई सारे डॉक्टर भी शहर छोड़कर अपनी जान बचाने भाग गए थे। अगले दिन की सुबह हुई तो शहर के एक हिस्से में लाशों का ढेर लगा था. अस्पतालों से लेकर सड़क तक पर मरीज ही मरीज थे. लोग अपने घरवालों को तलाश रहे थे. 

इस त्रासदी में इंसानों के साथ बड़ी संख्या में जानवर और पक्षी मारे गए। कल तक कई परिवारों को रोजी रोटी के सहारे जीवन दे रही यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी आज उस जीवन को लील चुकी थी. सरकार के पास भी अभी ना कोई ठोस इंतजाम था और ना ही कोई जवाब। जिंदा बचे लोग अब अपने परिजनों को तलाश करने लगे। किसी को अपने परिजनों की लाश मिल रही थी तो किसी को कोई बेहोश मिल जा रहा था। 

 

भोपाल गैस कांड में कितने लोग मरे – Bhopal Gas Tragedy Death Toll
यह हादसा भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फ़ैक्टरी से हुई जहरीली गैस के रिसाव से हुआ था. इस गैस के रिसाव से 500,000 से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए थे।  भोपाल गैस कांड में आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 3,787 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक आंकड़े में बताया गया है कि इस दुर्घटना में 15,724 लोगों की जान गई थी।
 
बताया जाता है कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। इस हादसे में 5.74 लाख से ज़्यादा लोग घायल या अपंग हुए थे. कई लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए थे।
 
 

भोपाल गैस कांड का आरोपी (Bhopal Gas Tragedy Accused)

लेकिन इस हादसे के लिए जिम्मेदार कंपनी के लोग कहीं नहीं दिख रहे थे। हादसे के 4 दिन पश्चात 7 दिसम्बर 1984 को UCC के अध्य्क्ष और CEO वारेन एन्डर्सन को गिरफ़्तार किया गया। परन्तु 6 घन्टे के बाद उन्हे 2100$ के मामूली जुर्माने पर मुक्त कर दिया गया। उसके बाद एंडरसन को मध्य प्रदेश सरकार के हवाई जहाज से दिल्ली भेजा गया. दिल्ली पहुंचते ही एंडरसन ने अमेरिका की फ्लाइट पकड़ी और फरार हो गए. इसके बाद 2014 में एंडरसन की मौत होने तक वो कभी भारत वापस नहीं आए।

 

भोपाल गैस त्रासदी के प्रभाव

इस त्रासदी का असर सिर्फ उन्हीं तीन चार दिन में नहीं हुआ। आज भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लोग इस हादसे की वजह से मारे जा रहे हैं। इस हादसे के शिकार जिंदा लोगों में से अधिकतर लोग सांस की बीमारियों और कैंसर के चलते दम तोड़ रहे हैं. महिलाओं को माहवारी में ज्यादा खून आने से लेकर बच्चे पैदा ना कर सकने जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इस हादसे के बाद बड़ी संख्या में लोग अंधे भी हो गए थे।

bhopal gas kand

भोपाल में उसका कारखाना आज बंद पड़ा हुआ है. वहां एक चौकीदार तैनात रहता है. फैक्टरी के सामने एक मूर्ति लगी है जिसमें एक महिला एक छोटे बच्चे को गोदी में लिए हुए है। फैक्टरी के आसपास की जमीन प्रदूषित हो गई थी जो आजतक प्रदूषित है।दोस्तों आपका इस Bhopal Disaster को लेकर क्या मानना है, आखिर भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) में गलती किसकी थी, हमें कमेंट के माद्यम से जरूर बताये धन्यवाद। 

 

दोस्तों भोपाल गैस कांड के ऊपर आप हमारी वीडियो भी देख सकते है। 

भोपाल गैस कांड कब और कहां हुआ था?

 2-3 दिसंबर की आधी रात को अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी के कीटनाशक बनाने वाले प्लांट से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था

भोपाल गैस कांड में कितने लोगों की मौत हुई?

अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3787 लोगों की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे।

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